छत्तीसगढ़ के प्रमुख वाद्य यंत्र | traditional musical instruments of chhattisgarh cgpsc
1.ढोल -
इसका खोल लकड़ी का होता है । इस पर बकरे का चमड़ा मढ़ा जाता है एवं लोहे की पतली कड़ियां लगी रहती है । जिसे चुटका कहते है । चमड़े अथवा सूत की रस्सी के द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है । फाग तथा शैला नृत्यों में इनका विशेष उपयोग होते हैं ।2.नगाड़ा-
आदिवासी क्षेत्र में इसे यमार या ढोलकिया लोग उत्सवों के अवसर पर बजाते हैं, छत्तीसगढ़ में फाग गीतों में इसका विशेष प्रयोग होते हैं । नगाड़ों में जोड़े अलग-अलग होते हैं । जिसमें एकाकी आवाज पतली (टीन) तथा दूसरे की आवाज मोटी (गद्द) होती है । जिसे लकड़ी की डंडीयों से पीटकर बजाये जाते हैं । जिसे बठेना कहते हैं । इसमें नीचे पकी हुई मिट्टी का बना होता है ।3.अलगोजा-
तीन या चार छिद्रों वाली बांस से बनी बांसुरी को अलगोजा या मुरली कहते हैं, अलगोजा प्रायः दो होते हैं, जिसे साथ मुंह में दबाकर फूंक कर बजाते हैं । दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं । जानवरों को चराते समय या मेलों मड़ाई के अवसर पर बजाते हैं ।4.खंजरी या खंझेरी-
डफली के घेरे में तीन या चार जोड़ी झांझ लगे हो तो यह डफली या खंझेरी का रुप ले लेता है, जिसका वादन चांग की तरह हाथ की थाप से किया जाता है ।5.चांग या डफ-
चार अंगुल चौड़े लकड़ी के घेरे पर मढ़ा हुआ चक्राकार वाद्य सोलह से बीस अंगूल का व्यास होते हैं जिसे तारों हाथ के थाप से बजाया जाता है, इसके छोटे स्वरुप को डफली कहते हैं, और बड़े स्वरुप को कहते हैं ।6.ढोलक-
यह ढोल की भांति छोटे आकार की होती है । लकड़ी के खोल में दोनो तरफ चमड़ा मढ़ा होता है, एक तरफ पतली आवास और दूसरे तरफ मोटी आवाज होती है, मोटी आवाज तरफ खखन लगा रहता है, भजन, जसगीत, पंडवानी, भरथरी, फाग आदि इसका प्रयोग होता है ।7.ताशा-
मिट्टी की पकी हुई कटोरी (परई) नुमा एक आकार होता है, जिस पर बकरे का चमड़ा मढ़ा होता है, जिसे बांस की पतली डंडी से बजाया जाता है, छत्तीसगढ़ में फाग गीत गाते समय नगाड़े के साथ इसका प्रयोग होता है ।